
रिपोर्टर- सुनील सोनकर
भारत के सर्वेयर जनरल रहे सर जॉर्ज एवरेस्ट ने अपनी प्रयोगशाला मसूरी में स्थापित कर देश-दुनिया की कई ऊंची चोटियों की खोज कर उनको मानचित्र में स्थान दिया। दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नाम भी उन्हीं के नाम पर रखा गया। मसूरी में मंगलवार को मसूरी पर्यटन विभाग द्वारा जॉर्ज एवरेस्ट हाउस पर सहायक पर्यटन अधिकारी हीरालाल आर्य के नेतृत्व में कार्यक्रम आयोजित किया गया व जार्ज एवरेस्ट की चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनको याद किया गया |
इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने कहा कि 1832 से लेकर 1843 तक सर जार्ज एवरेस्ट ने दुनिया की कई ऊंची चोटियों की खोज मसूरी में रहकर की थी। उनके नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट का नामकरण किया गया था, जबकि पहले उसको नेपाल में सागरमाथा, तिब्बत में चोमोलुंग्मा कहते थे। वहीं सर जार्ज 1830 से लेकर 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल भी रहे थे। उनका जन्म चार जुलाई 1790 में हुआ था। मसूरी के सर जार्ज एवरेस्ट हाउस का पार्क एस्टेट में पर्यटन विभाग द्वारा सौंदर्यीकरण किया।

इतिहासकार गोपाल भारद्वाज ने कहा कि सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर दुनिया की सबसे ऊंची चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट रखा गया, उन्होंने जीवन का एक लंबा अरसा पहाड़ों की रानी मसूरी में गुजारा था। वेल्स के इस सर्वेयर एवं जियोग्राफर ने ही पहली बार एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन बताई थी। इसलिए ब्रिटिश सर्वेक्षक एंड्रयू वॉ की सिफारिश पर वर्ष 1865 में इस शिखर का नामकरण उनके नाम पर हुआ। इससे पहले इस चोटी को श्पीक-15 नाम से जाना जाता था। जबकि, तिब्बती लोग इसे श्चोमोलुंग्माश् और नेपाली सागरमाथा कहते थे।
मसूरी स्थित सर जॉर्ज एवरेस्ट के घर और प्रयोगशाला में ही वर्ष 1832 से 1843 के बीच भारत की कई ऊंची चोटियों की खोज हुई और उन्हें मानचित्र पर उकेरा गया। जॉर्ज वर्ष 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल रहे। सर जॉर्ज एवरेस्ट का जन्म चार जुलाई 1790 को क्रिकवेल (यूनाइटेड किंगडम) में पीटर एवरेस्ट व एलिजाबेथ एवरेस्ट के घर हुआ था। इस प्रतिभावान युवक ने रॉयल आर्टिलरी में कैडेट के रूप में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनकी कार्यशैली और प्रतिभा को देखते हुए वर्ष 1806 में इनमें भारत भेज दिया गया। यहां इन्हें कोलकाता और बनारस के मध्य संचार व्यवस्था कायम करने के लिए टेलीग्राफ को स्थापित और संचालित करने का दायित्व सौंपा गया। कार्य के प्रति लगन एवं कुछ नया कर दिखाने की प्रवृत्ति ने इनके लिए प्रगति के द्वार खोल दिए।
वर्ष 1816 में जॉर्ज जावा के गवर्नर सर स्टैमफोर्ड रैफल्स के कहने पर इस द्वीप का सर्वेक्षण करने के लिए चले गए। यहां से वर्ष 1818 में भारत लौटे और यहां सर्वेयर जनरल लैंबटन के मुख्य सहायक के रूप में कार्य करने लगे। कुछ वर्ष काम करने के बाद जॉर्ज थोड़े दिनों के इंग्लैंड लौटे, ताकि वहां अपने सामने सर्वेक्षण के नए उपकरण तैयार करवाकर उन्हें भारत ला सकें। भारत लौटकर वे कोलकाता में रहे और सर्वेक्षण दलों के उपकरणों के कारखाने की व्यवस्था देखते रहे। वर्ष 1830 में जॉर्ज भारत के महासर्वेक्षक नियुक्त हुए। वर्ष 1847 में जॉर्ज ने भारत के मेरिडियन आर्क के दो वर्गों के मापन का लेखा-जोखा प्रकाशित किया। इसके लिए उन्हें रॉयल एस्ट्रोनॉमिकल सोसायटी ने पदक से नवाजा। बाद में उन्हें रॉयल एशियाटिक सोसायटी और रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी की फैलोशिप के लिए चुना गया। वर्ष 1854 में उन्हें कर्नल के रूप में पदोन्नति मिली। फरवरी 1861 में वे ‘द ऑर्डर ऑफ द बाथ’ के कमांडर नियुक्त हुए। मार्च 1861 में उन्हें श्नाइट बैचलर्य बनाया गया। एक दिसंबर 1866 को लंदन के हाईड पार्क गार्डन स्थित घर में उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें चर्च होव ब्राइटो के पास सेंट एंड्रयूज में दफनाया गया है।
मसूरी स्थित हाथीपांव पार्क रोड क्षेत्र के 172 एकड़ भूभाग में बने जॉर्ज एवरेस्ट हाउस (आवासीय परिसर) और इससे लगभग 50 मीटर दूरी पर स्थित प्रयोगशाला (आब्जरवेटरी) का जीर्णोद्धार कर मूलस्वरूप को बचाते हुए जार्ज एवरेस्ट हाउस का पुननिर्माण कर आसपास के क्षेत्र को करीब 23 करोड रूपए की लागत से विकसित किया गया है वहीं सर जार्ज एवरेस्ट से जुड़े इतिहास को लेकर म्यूजियम का भी निर्माण कराया गया है जो पर्यटकों के लिये आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है।