आलेख, अनूप नौटियाल….हालांकि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के त्वरित हस्तक्षेप के कारण सेंट जोसेफ्स एकेडमी (SJA) में हाल ही में घटित प्रकरण समाप्त हो गया है, फिर भी सवाल उठाए जाने चाहिए कि किस प्रकार एक उच्च-रैंकिंग आईएएस अधिकारी ने स्कूल के खेल मैदान में पार्किंग स्थल विकसित करने के इरादे से नजूल भूमि को अधिग्रहित करने का आदेश पारित कर दिया। हालांकि उनके पास कानूनी कारण हो सकते हैं किन्तु इस घटनाक्रम ने स्कूल समुदाय, सैकड़ों चिंतित नागरिकों और एक सक्रिय और जागरूक पूर्व छात्रों के एलुमनाई नेटवर्क के बीच कड़वाहट पैदा कर दी है।
देहरादून शहर में पार्किंग, यातायात और सार्वजनिक परिवहन की अत्यधिक कमी की तिहरी चुनौतियां गंभीर हैं, लेकिन क्या एक खेल मैदान को अधिग्रहित करके उस जगह को पार्किंग स्थल बनाना समझदारी है? क्या इस उद्देश्य के लिए एक स्कूल के विकल्प के तौर पर शहर या शहर की सीमा के भीतर कोई और स्थान नहीं हो सकते थे?
देहरादून में उत्तराखंड राज्य सरकार और समस्त नगर इकाई अब तक एक मजबूत सार्वजनिक परिवहन प्रणाली यानि पब्लिक ट्रांसपोर्ट विकसित करने में विफल रहे हैं। एक ऐसी प्रणाली जो अतिरिक्त पार्किंग की मांग को कम कर सके। मैं आपको याद दिलाना चाहूंगा कि पिछले छह-सात वर्षों से हम देहरादून में मेट्रो, नियो मेट्रो, लाइट रेल ट्रांजिट और पॉड टैक्सियों जैसी विभिन्न परिवहन विकल्पों के बारे में सुन रहे हैं, लेकिन जमीनी हकीकत क्या है, सबके सामने है। ‘St. Joseph’s Academy’
अब सेंट जोसेफ्स एकेडमी के हजारों बच्चों और छात्रों का सवाल आता है। यह कितना चिंताजनक है कि अब वापस लिया गया यह आदेश खेल के मैदान को कंक्रीट से भरे पार्किंग स्थल के बदले लगभग छीन ही लेता। उस सीमेंटेड ढांचे से देहरादून शहर, जो तेजी से अपनी हरियाली और अपनी पहचान खो रहा है, पर पर्यावरणीय प्रभाव क्या होता?
हमारी सामूहिक कमजोर याददाश्त को ध्यान में रखते हुए यह कहना महत्वपूर्ण है कि हमने हाल ही में 2024 की भीषण गर्मी में 43 डिग्री का देहरादून में कहर झेला है। एक बड़ा पार्किंग स्थल, जो सार्वजनिक सुविधाओं की आड़ में खेल के मैदान को हथियाकर विकसित किया जाना था, न केवल स्कूल बल्कि शहर के केंद्र में भी अर्बन हीट आइलैंड इफ़ेक्ट को और बढ़ा देता।
इस मुद्दे को देखने के कई अन्य तरीके हो सकते हैं, लेकिन मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि जिस गति से देहरादून के जिलाधिकारी, देहरादून नगर निगम के आयुक्त, एमडीडीए के उपाध्यक्ष और यातायात पुलिस अधीक्षक की उच्च स्तरीय समिति को तीन दिनों में राज्य सरकार को निरीक्षण रिपोर्ट सौंपनी थी, ये तेज़ी समझ से परे है। एक ऐसे निष्क्रिय सिस्टम में 72 घंटे की कड़ी समय सीमा को कैसे देखा जाए जहाँ कई बार महीनों और वर्षों तक कुछ नहीं होता।
अंत में, शहर में अफवाहें और आरोप जोरों पर हैं कि उपरोक्त आदेश राज्य सरकार में एक प्रभावशाली और प्रतिष्ठित राजनैतिक पद पर आसीन एक व्यक्ति के व्यावसायिक हितों को पूरा करने के लिए पारित किया गया था। इस प्रस्तावित पार्किंग स्थल से सबसे ज्यादा फायदा ऐसे ही संपत्ति मालिकों को होता जो अपने व्यावसायिक परिसरों के पास SJA पार्किंग स्पेस चाहते थे। जिम्मेदारी के साथ कहें तो इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता, खासकर तब जब एक भ्रष्ट व्यवस्था में इस प्रकार की चीजें होती रहती हैं, जहाँ निजी स्वार्थ से प्रेरित एक-दूसरे की मदद की जाती है, ली जाती है।
मैं मुख्यमंत्री और उत्तराखंड मुख्य सचिव को उनके त्वरित कदमों के लिए धन्यवाद देना चाहूंगा। इस SJA प्रकरण के बाद यह महत्वपूर्ण है कि सत्ता में बैठे लोगों को सख्त संदेश दिया जाए कि वे कथित व्यावसायिक लाभों के लिए अपने पदों का दुरुपयोग न करें। देहरादून और वास्तव में पूरे उत्तराखंड ने नौकरशाही, राजनीति और व्यावसायिक हितों की मिलीभगत के कारण बहुत कुछ खोया है। मुझे उम्मीद रहेगी कि इस विवाद के समाप्त होने से सभी को यह जानते हुए कि इस प्रकार के मनमाने और नैतिकता से परे फैसलों को चुनौती दी जा सकती है से राहत और सशक्तिकरण का आभास होगा।