✍️जोत सिंह बिष्ट, देहरादून, उत्तराखंड राज्य के निर्माण के साथ फौरी तौर पर तत्कालीन अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री श्री नित्यानंद स्वामी जी और उनके सहयोगियों ने राज्य के हर विभाग में नए सिरे से नौकरियों की भर्ती का पिटारा खोलने के साथ-साथ राज्य की प्रथम विधानसभा के अध्यक्ष श्री प्रकाश पंत ने अपने 16 माह के कार्यकाल में 130 लोगों को विधानसभा कार्यालय में नौकरियां प्रदान की। यह सारी नौकरियां बगैर किसी भर्ती प्रक्रिया का पालन किए हुए की गई।
राज्य की पहली निर्वाचित सरकार में विधानसभा अध्यक्ष चुने गए श्री यशपाल आर्य ने अपने कार्यकाल में 85 लोगों को भर्ती किया। श्री यशपाल आर्य ने भी स्वर्गीय प्रकाश पंत की तरह बिना भर्ती प्रक्रिया का पालन किये 85 लोगों को विधानसभा में नौकरियां दे दी।
स्व0 हरवंश कपूर जी ने भी उसी गलत तरीके से भर्ती अभियान की परंपरा को आगे बढ़ाया और अपने कार्यकाल में 35 नई भर्तियाँ की, जिसमे उनके निजी लोग शामिल थे। इस प्रकार नवंबर 2000 से दिसंबर 2011 तक अलग अलग कारणों का हवाला देकर भर्ती प्रक्रिया को दरकिनार करते हुए लगभग 250 लोगों को गलत तरीके से नौकरी दी गई।
एक बात जो निकल करके आ रही है कि सभी सरकार के कार्यकाल में विधानसभा सचिवालय ने विधानसभा अध्यक्ष के माध्यम से इस तरह की नौकरियों पर अपने नाते रिश्तेदारों को रखने के लिए कार्मिक विभाग, वित्त विभाग दोनों के पास प्रस्ताव की फाइल भेजी। कार्मिक और वित्त विभाग ने इस तरह की नियुक्ति प्रक्रिया पर लिखित रूप में आपत्ति लगाई, लेकिन फिर भी भर्ती की प्रक्रिया का पालन न करते हुए यह प्रस्ताव तत्कालीन मुख्य मंत्री को भेजे गए। मुख्यमंत्री जी द्वारा विचलन के माध्यम से या फिर मंत्रिमंडल की बैठक में इस तरह की नियुक्तियों के लिए स्वीकृति जारी करके विधानसभा अध्यक्ष का गलत तरीके से नौकरी की भर्ती के लिए उत्साहवर्धन किया गया।
उत्तराखंड एक छोटा राज्य है। जिसमें कुल 70 विधानसभा क्षेत्र हैं। विधानसभा के सत्रों की संख्या तो सभी राज्यों के बराबर होती है, लेकिन उत्तराखंड में हर सत्र में सदन की कार्यवाही अधिकतम 5 दिन से ज्यादा कभी नहीं चली। हर बार 2 या 3 दिन में सरकार और विपक्ष मिलकर के सदन की कार्यवाही को समेट लेते हैं। ऐसे में इस संसाधन विहीन राज्य में विधानसभा की कार्यवाही संचालित करने के लिए 2012 से पहले भर्ती किए गए 250 कार्मिकों की संख्या पर्याप्त नहीं बल्कि पर्याप्त से अधिक थी।
2012 में जो नई सरकार गठित हुई उसके अध्यक्ष श्री गोविंद सिंह कुंजवाल जी ने उस गैरसैण के नाम पर जो राजधानी घोषित भी नहीं हुई थी फिर पुरानी गलत प्रक्रिया का अनुसरण करते हुए अपने परिवार के सदस्यों से लेकर नाते रिश्तेदारों और बहुत सारे सिफारिसी चिट्ठी वालों को विधानसभा में नौकरी देने के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया। कहा तो यह भी जाता है कि 2000 से लेकर 2022 तक नाते रिश्तेदारों परिवार के सदस्यों के अलावा अंडर द टेबल डील के माध्यम से भी बहुत सारे ऐसे लोगों को नौकरी पर रखा गया जिनसे मोटी रकम वसूल की गई।
गोविंद सिंह कुंजवाल जी ने गैरसैण के नाम पर 158 लोगों को भर्ती करने के लिए प्रस्ताव तैयार कर कार्मिक और वित्त विभाग को भेजा। दोनों जगह से इस प्रस्ताव पर अपति लगी, परन्तु अपनी सरकार बचाने के इनाम के रूप में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत जी ने या तो विचलन या फिर मंत्रिमंडल की बैठक में इसकी स्वीकृति जारी करते हुए गलत तरीके से नौकरी में भर्ती का रास्ता साफ किया।
गैरसैण में केवल निर्माण कार्य चल रहा था। अभी तक राजधानी घोषित नहीं हुई थी। ऐसे में गैरसैण के नाम पर विधानसभा में नौकरी की भर्ती का कोई औचित्य नहीं बनता था। लेकिन फिर भी 158 लोगों की भर्तियां की गई। जनता की गाढ़ी कमाई के पैसे को इस तरह से बर्बाद करने का रास्ता खोला गया। हकदार नौजवानों की नौकरी बेच दी गई।
2017 में भाजपा सत्ता में आई। प्रेमचंद अग्रवाल जी विधानसभा अध्यक्ष चुने गए। प्रेमचन्द अग्रवाल ने भी उस गैरसैण के नाम पर जिस को त्रिवेंद्र सरकार ने ग्रीष्मकालीन राजधानी तो घोषित किया, जिस गैरसैंण के नाम पर पहली सरकार में 158 लोगों को नौकरी में रखा जा चुका था और सरकार ने तो विधानसभा सत्र भी करना बंद कर दिया, जिस गैरसैंण में आज तक कोई कर्मचारी नहीं गया, इस सरकार के कार्यकाल के आखिरी दिनों में जब धामी जी मुख्यमंत्री बन गए 72 लोगों जिनमें उनके नाते रिश्तेदार थे को भर्ती करने का प्रस्ताव तैयार किया। इस बार भी पुरानी गलत प्रक्रिया अपनाई गई। अंत में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने विचलन के माध्यम से इन 72 लोगों को भर्ती करने का आदेश जारी किया।
यूके ट्रिपल एससी परीक्षा भर्ती घोटाले का शोर जब चरम पर था, उसी समय प्रेमचंद अग्रवाल जी की इन भर्तियों की एक सूची सोशल मीडिया पर वायरल हुई। पूरे राज्य में हड़कंप मच गया, कि बेरोजगार और योग्य नौजवानों की नौकरी बेची जा रही है। इसमें विधानसभा अध्यक्ष दोषी है।
इस सूची के जारी होने के साथ ही परत दर परत चीजें निकलती रही। सरकार के खिलाफ लोगों के गुस्से को देखते हुए सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी ने विधानसभा अध्यक्ष रितु खंडूरी जी को एक पत्र लिखकर इसकी जांच करने का आग्रह किया। विधानसभा अध्यक्ष ने बिना देर किए दूसरे दिन विधानसभा में नौकरियों की भर्तियों की जांच करने के लिए एक कमेटी गठित करके उनका कार्यकाल 30 दिन के लिए निर्धारित किया।
जांच कमेटी ने अगले दिन से काम शुरू करते हुए अपने काम में भारी तत्परता दिखाई और 30 के बजाय 20 दिन में अपनी जांच पूरी करके विधानसभा अध्यक्ष को अपनी रिपोर्ट सौंप दी। जांच कमेटी की रिपोर्ट विधिवत रूप से सार्वजनिक तो नहीं की गई, लेकिन भर्ती की प्रक्रिया का पालन न करते हुए 2012 से लेकर 2022 के बीच के 10 साल के वक्त में विधानसभा में गोविंद सिंह कुंजवाल जी के द्वारा 158 तथा प्रेमचंद्र अग्रवाल जी के द्वारा 72 लोगों को भर्ती करने के तरीके को कमेटी ने गलत पाया। उसी के आधार पर कर्मचारियों को बिना नोटिस दिए बिना उनका पक्ष जाने विधान सभा अध्यक्ष ने पुनः भारी तत्परता दिखाते हुए अगले दिन प्रेस वार्ता आयोजित करके 228 लोगों को नौकरी से निकालने का फरमान जारी किया। उन्होंने मुख्यमंत्री जी को भी इसकी चिट्ठी भेजी। मुख्यमंत्री ने भी विधानसभा अध्यक्ष के फैसले की पुष्टि करते हुए 228 लोगों को नौकरी से विरत कर दिया।
अंतरिम सरकार को विधानसभा की कार्रवाई संचालित करने के लिए तात्कालिक तौर पर कर्मियों की आवश्यकता थी। इसलिए उस समय नौकरी पर भर्ती करने की लंबी प्रक्रिया को अपनाने का वक्त नहीं था। 130 लोग जो नियुक्त किए गए इतने लोगों की आवश्यकता महसूस की गई तो उस समय विचलन से एक प्रस्ताव पर स्वीकृति देकर भर्ती करना नियम संगत ना होते हुए भी व्यावहारिक रूप में ठीक माना जा सकता है।
लेकिन 2002 से 2022 के बीच में जो भर्तियां की गई उन सब में भी प्रक्रिया का पालन न करते हुए विधानसभा के अध्यक्षों ने तत्कालीन सरकार के मुख्यमंत्रियों से स्वीकृति प्राप्त करते हुए जो भर्तियां की उनमें मेरी नजर में नौकरी पाने वाले दोषी जरूर हैं लेकिन उनसे बड़े दोषी वह लोग हैं जिन्होंने हर तरह से नियम कानून को तोड़ मरोड़ करके हकदार लोगों का हक मारते हुए अपने चहेतों को अपने नाते रिश्तेदारों को अपने परिवार के सदस्यों को नौकरी देने के अलावा, ले देकर के नौकरियां बेचने का काम किया वह सबसे बड़े दोषी हैं।
इसमें केवल विधानसभा अध्यक्ष और विधानसभा सचिवालय के अधिकारी कर्मचारी ही नहीं बल्कि जिन जिन मुख्यमंत्रियों ने विचलन के माध्यम से स्वीकृति दी वह भी बराबर के दोषी हैं। इसलिए जिन 228 लोगों को नौकरी से निकाला गया उन पर कोई कार्रवाई करने से पहले इन लोगों पर कार्रवाई होनी चाहिए।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय के फैसले को सही ठहराते हुए 228 लोगों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाने के फैसले को यथावत रखा। हम न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए सरकार से मांग करते हैं कि:-
● जिन लोगों ने चाहे वह कोई भी हो नियम कानून जानते हुए भी नियम कानून को ताक पर रखकर गलत तरीके से विधानसभा में नौकरी में भर्ती करने का अपराध किया ऐसे हर व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करते हुए न्यायालय में चार्जशीट दाखिल की जाय।
● राज्य निर्माण के बाद 2000 से 2022 तक विधानसभा कर्मचारियों की जितनी भर्तियां की गई उन सब की भर्ती प्रक्रिया की जांच करते हुए जो मानक 228 निकाले गए कर्मचारियों के लिए तय किया गया वहीं मानक बाकी कर्मचारियों पर भी लागू किये जाने चाहिए।
सुप्रभात उत्तराखण्ड