क्या उत्तराखंड में राजनीतिक दलों की तरह पत्रकारों में भी हो रही है गुटबाजी❓
जी हां जवाब है की बिल्कुल हो रही है, पढ़िए पूरा मामला तब शायद आप समझ पाए की क्या है पूरी कहानी..
ऐसा ही मामला देखने में तब सामने आया जब इस वर्ष उत्तरांचल प्रेस क्लब के वार्षिक चुनाव पूर्ण हुए … जहां उत्तरांचल प्रेस क्लब में अब तक प्रिंट मीडिया का दबदबा रहा है व प्रिंट मीडिया से जुड़े हुए व्यक्ति ही आजतक अध्यक्ष बनते आएं हो, वहां इस बार बड़ा बदलाव होते हुए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े हुए वरिष्ठ पत्रकार अजय राणा अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुएं हैं, मगर हैरानी की बात है कि किसी भी प्रमुख अखबार ने उनके अध्यक्ष पद पर नियुक्त होने की खबर अपने अखबार में नहीं छापी, मात्र एक अखबार ने फॉर्मेलिटी निभाते हुए छोटे से कॉलम में इस खबर को जगह दी है, वह भी बिना किसी फोटो के साथ… इसके अलावा ऐसे अखबारों ने खबर को स्थान दिया है जो अभी प्रमुख अखबार बनने की लिस्ट में काफी पीछे चल रहे हैं, जबकि आज तक इसके विपरीत प्रेस क्लब के अध्यक्ष जब भी नियुक्त हुए हैं उनके बड़े-बड़े फोटो अखबारों में छापे गए हैं मगर इसबार ऐसा नहीं हुआ क्या यह कोई भेदभाव नहीं है? या फिर यह नहीं दर्शाता है कि उत्तरांचल प्रेस क्लब में भी गुटबाजी चरम पर चल रही है?
ऐसे में बड़ा सवाल यह भी उठता है कि जो लोग पत्रकारों के हित साधने का दावा करते हों और पत्रकारों को आश्वस्त करते हो कि जरूरत पड़ने पर वे लोग आपके संग खड़े होंगे वह लोग स्वयं ही गुटबाजी में शामिल हो रहें हैं? तो क्या ये लोग वाकई में पत्रकार साथियों का हित साधेंगे?
हम किसी भी व्यक्ति विशेष पर कोई आरोप नहीं लगा रहें है मगर एनआईयू आपसे यह सवाल पूछना चाहता है कि क्या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़ा हुआ व्यक्ति अगर उत्तरांचल प्रेस क्लब का अध्यक्ष बना तो क्या उनकी खबर को प्रिंट मीडिया अपने अखबारों में जगह नहीं देगा?
क्या उत्तराखंड में प्रिंट मीडिया के कई नाम से संस्थान चला रहे इन उद्यमियों का दायित्व नहीं था की उत्तराखंड के सबसे बड़े और प्रमुख प्रेस क्लब की खबर को प्रमुखता से छापें?
यूं तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व प्रिंट मीडिया दोनों ही इन चुनाव में चर्चाओं में थे मगर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े व्यक्ति के अध्यक्ष बनने की खबर प्रिंट मीडिया में ना छपने से इन दोनों के बीच चल रही गुटबाजी बड़े स्तर पर जगजाहिर हो रही है,
वहीं कार्यकारिणी के अन्य समस्त पद (अध्यक्ष पद को छोड़कर) सभी पद उत्तराखंड पत्रकार यूनियन से जुड़े हुए लोगों ने जीते हैं, ऐसे में नजर आ रही इस गुटबाजी के चलते नवनिर्वाचित अध्यक्ष का कार्यकाल संघर्ष पूर्ण होने की पूर्ण संभावनाएं नजर आ रहीं है,
अब देखना दिलचस्प होगा कि अपने सौम्य व्यवहार से सब को जीत लेने वाले नवनिर्वाचित अध्यक्ष अजय राणा इस संपूर्ण चुनौती से कैसे पार पाते हैं,
हालांकि उत्तरांचल प्रेस क्लब की साख भी दांव पर लगी हुई है, लंबे समय से देखा जा रहा है कि उत्तरांचल प्रेस क्लब में की जा रही प्रेस कॉन्फ्रेंस में उत्तरांचल प्रेस क्लब से जुड़े हुए पत्रकार प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान नदारद रहतें हैं, सोशल मीडिया जिसको की डिजिटल मीडिया भी कहा जाता है, से जुड़े हुए पत्रकार ही वर्तमान समय में प्रेस क्लब की इज्जत बचाए हुए हैं, बाकी कथित बड़े चैनल के मीडियाकर्मी तभी नजर आते हैं जब कोई बड़ा सेलिब्रिटी उत्तरांचल प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने या उसमें प्रतिभाग करने आता हो, इसके सिवा इनकी उपस्थिति हमेशा नदारद रहती है, ऐसे में अब उत्तरांचल प्रेस क्लब को अपनी साख बचाने के लिए भी जद्दोजहद करने की जरूरत नजर आ रही है, इस लिहाज से भी वर्तमान समय में नवनिर्वाचित अध्यक्ष पर बेहद और बड़ी जिम्मेदारी आन पड़ी है,
✍️दीप मैठाणी
मुख्य संपादक NIU